जान भले न ले पर लाचार बना देता है अल्जाइमर्स

जान भले न ले पर लाचार बना देता है अल्जाइमर्स

अल्‍जाइमर्स, यानी भूलने की बीमारी। डिमेंशिया का एक प्रकार। डिमेंशिया दरअसल अलग-अलग तरह की दिमागी बीमारियों की एक कैटेगरी है जिसके तहत एक बीमारी अल्‍जाइमर्स भी है। दो साल पहले विश्‍व अल्‍जाइमर्स दिवस पर आई एक रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में करीब चार करोड़ साठ लाख लोग डिमेंशिया से ग्रस्‍त हैं और अगले 32 सालों में यह संख्‍या तीन गुनी हो जाएगी।

लेकिन डिमेंशिया के बारे में हम विस्‍तृत रूप से दूसरे आलेख में चर्चा करेंगे। यहां हम सिर्फ अल्‍जाइमर्स की जानकारी तक खुद को सीमित रखेंगे। आमतौर पर उसे बुजुर्गों में होने वाली परेशानी माना जाता है मगर यह देखा गया है कि किसी के परिवार में अगर कभी इस बीमारी का इतिहास रहा हो तो परिवार में किसी कम उम्र के व्‍यक्ति को भी यह समस्‍या हो सकती है।

मैक्‍स साकेत अस्‍पताल के डॉक्‍टर राजशेखर रेड्डी के अनुसार यह सीधे-सीधे ब्रेन से जुड़ी बीमारी है और याददाश्त कम या खत्म होने की बीमारी अल्जाइमर्स सामान्‍यत- बुजुर्गों को अपना शिकार बनाती है। खासकर 60-65 वर्ष की उम्र के लोग इसकी चपेट में जल्‍दी आ जाते हैं। उम्र के आखिरी पडाव पर पहुंच कर स्मृति के लिए जिम्मेदार मस्तिष्क के हिस्‍से की कोशिकाएं मरने लगती हैं। एक खास किस्म का प्रोटीन इन कोशिकाओं पर जमा होने से इनकी यह हालत होती है।

कोशिकाओं के मरने के कारण सहज गति से लोग चीजें भूलने लगते हैं। मरीज कई बातें याद नहीं कर पाता, थोडी देर पहले की बात भूल जाता है और परिवार के लोगों के नाम भी उसे याद नहीं रह पाते। इतना ही नहीं, वह जाने पहचाने रास्तों में भी भटक जाता है और खाना खाया या नहीं यह भी भूल जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो मस्तिष्क घटनाओं को दर्ज करना ही बंद कर देता है।

वैसे इस बीमारी के शिकार लोगों को कोई जानलेवा परेशानी नहीं होती है। परिवार के लोगों को यह समझने की जरूरत होती है। तभी उसकी चिड़चिड़ाहट दूर हो सकती है। दूसरी बात इस बीमारी का कोई निश्चित इलाज नहीं है। बीमारी की शुरूआती अवस्था में कुछ दवाओं से फायदा होता है और कुछ खास रसायनों के निर्माण में इन दवाइयों से मदद मिलती है। मगर बीमारी की गंभीर स्थिति में ये दवाइयां ज्यादा असरदार नहीं हो पाती हैं।

खास बात यह है कि यह बीमारी आनुवंशिक भी हो सकती है। परिवार में पहले किसी को यह बीमारी रही हो तो कम उम्र में भी व्यक्ति को यह रोग अपने शिकंजे में ले सकता है। इसलिए इस बीमारी के आनुवंशिक इतिहास वाले लोगों को यदि भूलने की समस्या हो तो उन्हें तत्काल किसी चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।

पढना-लिखना न छोडें

योगाचार्य सुरक्षित गोस्वामी के अनुसार बढती उम्र में याददाश्त या स्मरण शक्ति का क्षीण होना कोई अस्वाभाविक बात नहीं है मगर जब लोग थोडी देर पहले की बात भूलने लगें या परिवार के लोगों के नाम उन्हें याद न आएं तो स्थिति गंभीर होती है और इस बीमारी को आधुनिक चिकित्सा जगत में अल्जाइमर्स नाम दिया गया है।

दरअसल, इस बीमारी की शुरुआत होते ही है पढना-लिखना और ध्यान लगाना बंद करने के कारण। पढना-लिखना छोडने के साथ ही स्मरण शक्ति का ह्रास शुरू होता है। इसी के कारण मस्तिष्क की स्मरण शक्ति से संबंधित कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने लगता है और कोशिकाएं मरने लगती हैं। योग क्रियाओं के अभ्यास के दौरान हमने यह अनुभव किया है कि पढना-लिखना पूरी तरह छोड देने वाले लोगों में वृद्वावस्था का प्रवेश भी जल्दी हो जाता है इसलिए सबसे पहले तो लोगों को फिर से पढने-लिखने की आदत डालनी चाहिए। इसके साथ-साथ कुछ प्राणायाम भी मस्तिष्क की स्मरण शक्ति बढाने में सहायक होते हैं।

सबसे पहले कपालभांथी। यह प्राणायाम बुजुर्गों को धीरे-धीरे करना चाहिए। इसके बाद पांच से दस मिनट तक अनुमोल-विलोम और फिर अत्यंत धीरे-धीरे भ्रस्त्रिका ओर भ्रामरी। प्राणायाम के बाद कुछ देर तक ओम का जाप करें और सबसे अंत में ध्यान की अवस्था में बैठ जाएं। ध्यान की यह अवस्था भी पांच से दस मिनट की हो सकती है। इस अवस्था में किसी तरह का सोच-विचार न करें बल्कि मस्तिष्क को पूरी तरह आराम दें।

अब बात करें आहार की। मस्तिष्क को तनाव से बचाने में सही भोजन का भी योगदान होता है। ताजे फल, हरी सब्जियों और दुग्ध उत्पादों को अपने भोजन में शामिल करें। इसके अलावा रात में 5 मिनट बादाम पानी में भिगोकर रख दें और सुबह उठकर छिलका निकालकर उनका सेवन करें।

एक और क्रिया स्मरण शक्ति बढाने में बेहद कारगर होती है। रोज रात को सोने से पहले हाथ-पैर धोकर बिस्तर पर जाएं और आंखें बंद करके सुबह से लेकर रात तक की अपनी पूरी दिनचर्या को एक-एक कर याद करें। हर घटनाक्रम को याद करने के बाद दिमाग को फिर आराम दें और तब सोने जाएं। इन उपायों से निश्चित रूप् से इस बीमारी में भी लाभ होगा।

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